Rumored Buzz on सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

Wiki Article



दानवीर कर्ण, राधेय, सूर्यपुत्र कर्ण, सूतपुत्र कर्ण

कर्ण थोड़ा लज्जित होकर होकर बोला ब्राह्मण देव. मै रणक्षेत्र में घायल पड़ा हुआ हू, मेरे सारे सैनिक मारे जा चुके है मृत्यु मेरी प्रतीक्षा कर रही है इस अवस्था में भला मै आपकों क्या दे सकता हु?

कर्ण की मृत्यु के सम्बन्ध में निम्नलिखित कारक गिनाए जा सकते हैं:

भगवान इन्द्र को दिया गया दान : पुराणों के अनुसार कर्ण प्रतिदिन अपने पास आए याचकों को मनचाहा दान देते थे, ये उनकी दिनचर्या में शामिल था. महाभारत के युद्ध के समय जब वे अपने स्नान और पूजा के पश्चात् याचको को रोज की तरह दान देने लगे, तब उन याचकों में भगवान इन्द्र अपना रूप बदलकर एक साधु के रूप में सम्मिलित हो गये और उन्होंने दान स्वरुप कर्ण के कवच और कुंडल मांग लिए और कर्ण ने बिना अपने प्राणों की चिंता किये अपने कवच और कुंडल को अपने शरीर से अलग कर उन्हें दान स्वरुप दे दिया. इस प्रसंग में महत्वपूर्ण बात यह थी कि महाबली कर्ण को यह बात पहले ही उनके पिता भगवान सूर्य से पता चल चुकी थी कि भगवान इंद्र अपने पुत्र अर्जुन के प्राणों के मोह वश उनसे इस प्रकार छल पूर्वक कवच और कुंडल का दान मांगने आएंगे और भगवान सूर्य ने अपने पुत्र कर्ण को अपने पुत्र मोह के कारण उन्हें ये दान देने से मना किया.

अब कर्ण का आखिरी कहानी। वर्षा इनकी पाँचवी पत्नी है जो कि राजा रजयसेन की पुत्री और कर्पजोत साम्राज्य की राजकुमारी थी। कर्ण और वर्षा का विवाह एक प्रेम कहानी के रूप में बताया गया है। वर्षा की ऐसी कहानी जो कि दुर्योधन, मयुरी और भानुमती की प्रेम कहानी को भी जोड़ सकती हैं। रत्नमला कर्ण और उनकी महारानी वर्षा की पुत्री है। वह दुर्योधन की पुत्री, लक्ष्मणा की सखी है। कर्ण ने वर्षा की बहन, गीता से भी विवाह की थी। राजकुमार श्रुतसेन कर्ण और महारानी गीता का पुत्र है। अर्जुन से तुलना[संपादित करें]

यह भी पढ़ें: महादेव के इस भक्‍त के थे तीन पैर, क्‍यों इन्‍हें मां पार्वती के श्राप का भाजन बनना पड़ा?

जब राजकुमारी कुंती अपने पुत्र कर्ण की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो गयी, तब उन्होंने बड़े ही दुःख के साथ इस प्रकार जन्मे अपने नवजात बालक को एक टोकरी में रखकर गंगा नदी में बहा दिया. इस प्रकार बहते – बहते यह हस्तिनापुर नगरी पहुँच गया और इस प्रकार अधिरथ नामक एक व्यक्ति को नदी में टोकरी में बहकर आता हुआ बालक दिखाई दिया और इस व्यक्ति ने इस बालक को अपने पुत्र के रूप में अपनाया.

महाभारत में अपनी वीरता के कारण जिस सम्मान से कर्ण का स्मरण होता है, उससे अधिक आदर उन्हें उनकी दानशीलता के कारण दिया जाता है. कर्ण का शुभ संकल्प था कि वह मध्याह्न में जब सूर्यदेव की आराधना करता है, उस समय उससे जो भी माँगा जाएगा, वह वचनबद्ध होकर उसको पूर्ण करेगा.

कर्ण की दानवीरता की बात सुनकर अर्जुन तर्क देकर उसकी उपेक्षा करने लगा. श्रीकृष्ण अर्जुन की मनोदशा समझ गये.

कर्ण की दानवीरता से अर्जुन भी प्रभावित हुए

जब परशुराम उठे तब उन्होंने देखा कि कर्ण का पैर खून से लथपथ था, तब उन्होंने उसे बोला कि इतना दर्द एक ब्राह्मण कभी नहीं सह सकता तुम निश्चय ही एक क्षत्रीय हो. कर्ण अपनी सच्चाई खुद भी नहीं जानता था, लेकिन परशुराम उससे बहुत नाराज हुए और गुस्से में आकर उन्होंने श्राप दे दिया कि जब भी उसे उनके द्वारा दिए गए ज्ञान की सबसे ज्यादा जरुरत होगी तभी वो सब भूल जायेगा.

महाभारत काल में वे कर्ण नाम से प्रसिद्ध हुए, जिसका अर्थ हैं – अपनी स्वयं की देह अथवा कवच को भेदने वाला.



और इस युद्ध में कर्ण more info और अर्जुन दोनो ही एक दूसरे पर महाअस्त्र का प्रयोग कर रहे थे कि तभी कर्ण के रथ का पहिया जमीन में धस गया और कर्ण उसे नही निकाल पा रहा था तो उसने जमीन से ही युद्ध शुरू रखा पर अर्जुन को हराने में कर्ण असमर्थ था और आखिर में अर्जुन ने अजन्लिकास्त्र से कर्ण की छाती में मारकर उनका वध किया कर्ण की मृत्यु के पश्चात[संपादित करें]

Report this wiki page